संस्कृति और विरासत
गढ़वाल का कुछ शब्दों में वर्णन करना कठिन है | यह क्षेत्र विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है | देवभूमि नाम के अनुरूप यहाँ बड़ी संख्या में मंदिर एवं धार्मिक पर्यटन को देखा जा सकता है | गढ़वाल क्षेत्र अपने मुख्य आकर्षणों जैसे हिमालय, नदी- झरनों एवं घाटियों की सुन्दरता से परिपूर्ण है | उत्तराखंड राज्य की अमूल्य संस्कृति राज्य को वरदान स्वरुप प्राप्त है | महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा घाघरा हो या यहाँ का स्वादिष्ट व्यंजन “फाणा” हो, लोकनृत्य “लंगवीर” हो या लोकगीत “जोड्स”, यहाँ की हर चीज लोगों को आपस में एक अटूट बंधन में जोडती है|
कुमांउनी और गढ़वाली लोगों की जीवनशैली और रहनसहन में उनकी संस्कृति प्रदर्शित होती है | यहाँ पर इन दो प्रमुख समूह के अलावा जौनसारी, बोक्सा, थारू, भोटिया और राजी भी प्रमुख जातीय समूह है | उत्तराखंड में ज्यादातर लोग सीढ़ीनुमा खेत एवं स्लेट छत वाले घरों में रहते हैं |गढ़वाली संस्कृति का मुख्य आकर्षण इतिहास, यहाँ के लोग, धर्म एवं नृत्य है जो की यहाँ पर राज्य करने वाले राजवंशो एवं जातियों के प्रभावों का एक सुन्दर समायोजन है | यहाँ के इतिहास में यद्यपि कलात्मक एवं सांस्कृतिक रूप से बहुत विविधता है किन्तु किसी व्यक्ति के ध्यानाकर्षण हेतु यह पर्याप्त है |
यहाँ के लोकनृत्य यहाँ के जीवन, मानव अस्तित्व एवं असंख्य मानव भावनाओं से युक्त हैं | इस शांत और सुरम्य राज्य की यात्रा तब तक अधूरी ही रहेगी जब तक यहाँ के स्थानीय जनों की संस्कृति एवं जीवनशैली के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं की जाती |
गढ़वाल क्षेत्र की लोकप्रियता पवित्र हिन्दू धर्म के धार्मिक स्थलों चार धाम के कारण है और इसी कारण इसे देवभूमि नाम से भी जाना जाता है |इस क्षेत्र का भोजन दिखने में सीधा सरल, किन्तु नैसर्गिक स्वाद से युक्त होता है | गढ़वाल की विषम एवं पहाड़ी परिस्थितियों के कारण गढ़वाली मांस खाना पसंद करते हैं एवं इसे अपने भोजन में विशेष स्थान भी देते हैं | किसी गाँव में किसी मंदिर अथवा किसी धार्मिक आयोजनों पर गाँव में रहने वाले एवं देश विदेश में रहने वाले सभी गाँव के लोगों को बुलाया जाता है जिसमे सभी लोग शामिल होते हैं |
गढ़वाली भोजन :-
स्थानीय लोग खानपान में पतले भूरे रंग की मंडवे की रोटी को भी पसंद करते हैं जो की मंडवे (बाजरा) के आटे से बनायीं जाती है एवं इसे लोग घर में बने घी के साथ खाते हैं | इसके अलावा गढ़वाल कुमाऊ की पहाड़ियों में गहथ के परांठे भी पसंद किये जाते हैं जिन्हें बनाने के लिए दाल को रात भर भिगाया जाता है बहुत सी लहसन,अदरक, हरी मिर्च और कुक्कुट के आटे के साथ मिला कर प्रेशर कुकर में पका कर इसे गेंहू के आटे के साथ बनाया जाता है |इसके अलावा यहाँ रोट, रस, काफ्ली, छनछयोड, भांग की चटनी आदि प्रसिद्ध है | आप जब भी गढ़वाल की यात्रा पर आयें तो स्थानीय रेस्तरां की सूची बना के रखे जहाँ आप स्थानीय व्यंजनों का लुत्फ़ ले सके ताकि आपकी यात्रा अप्रत्याशित आनंद से भर सके |